सिन्धु घाटी सभ्यता के वास्तविक निर्माता के विषय पर आज भी इतिहासकारों एवं बुद्धिजीवियों के मध्य विचारों का प्रतिद्वन्द्व छिड़ा हुआ है। इनके एक वर्ग आर्यों के और दूसरा वर्ग द्रविड़ों के समर्थन में दिखाई देते हैं। इन दोनों दृष्टिकोणों के विपरीत, इस पुस्तक में लेखक ने अपनी निजी शोध एवं सिन्धु लिपि की व्याख्या के आधार पर सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माता होने का श्रेय संताल जाति को दिया है।
वैज्ञानिकों के द्वारा राखीगढ़ही के प्राचीन DNA में Y-DNA और mt-DNA, M4a आनुवांशिक कड़ी का प्रमाण पाया गया है। ये आनुवांशिक संबंध, भारत के आस्ट्रो-एशियाटिक भाषा समूह से है - जैसे मुण्डारी, संताली एवं खासी। प्रसिद्ध भाषाविद माइकल विजल ने भी तार्किकतापूर्वक सिन्धु लिपि को मुण्डा-परिवार की भाषा होने का वकालत किया है। ऐसी स्थिति में राखीगढ़ही के प्राचीन DNA में यदि O एवं M4a का आनुवांशिक संबंध पाया जा रहा है तो यह तथ्य अनेकों के लिए आश्चर्य का विषय होगा तथा वैदिक पूर्व भारत की इतिहास का हमारे ज्ञान में सुधार करते हुए उस इतिहास में भी संशोधन करना आपेक्षित होगा।
(दी हिन्दू, दिसम्बर 23, 2017 में टोनी जोसफ के लेख पर आधारित)
लेखक झारखण्ड राज्य के साहिबगंज जिला में स्थित बरहेट प्रखण्ड के कुसमा गाँव के स्थायी निवासी हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग में स्थित संत जेवियर विद्यालय से होने के उपरान्त उन्होंने संत कोलम्बस महाविद्यालय से अर्थशात्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। वे झारखण्ड राज्य में वाणिज्य-कर विभाग में कार्यरत रहने के पश्चात्, वाणिज्य-कर उपायुक्त के पद से सेवानिवृति प्राप्त किए। सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय पर प्रारम्भ से गहरी रूचि रहने के कारण, उनके द्वारा इस पुस्तक के माध्यम से कई नए रोमांचक तथ्य पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
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